Thursday, August 12, 2010

मधुर संस्मरण (Madhur Sansmaran)

मधुर संस्मरण







"प्राणीमात्र के परम हितैषी , ज्ञानदाता , जीवन -उद्धारक , तारणहार , शांतिदाता , पुन्यदाता, योगसिद्ध, निर्दोष नारायण स्वरूप , ब्रह्मानिष्ट्थ मेरे सदगुरुदेव प्रातः स्मरणीय पूज्यपाद स्वामी श्री लीलाशाहजी बापू के बारे में मै सत्संग में बोल ही नहीं पाता हूँ | मै जब उनका स्मरण करता हूँ ...उनकी अनंत अनंत लीलाएं , कृपा , उपकार , दया को याद करता हूँ तब मेरा ह्रदय , मेरा दिल , मेरे भाव , मेरे आंसू मेरे कहने में नहीं रहते | उनके लिए मै क्या बोलूं ? रहस्य समझ में आता है लेकिन समझाया नहीं जा सकता | उनकी दृष्टी में सदैव पवित्रता , प्रेम और शांति का प्रवाह बहता रहता था | उनकी ममता मुक्तिदायी , आनंददायी और मधुर्यदायी थी |मुझ बेहाल को निहाल केर देने वाले , अनाथ को सनाथ बनाने वाले मेरे सदगुरुदेव सक्सात सत्चिद्दानंद स्वरुप ब्रह्मा , विष्णु और महेश हैं |



लाखों लाखों जन्म के माता - पिता जो न दे सके वह मेरे परम पिता गुरुदेव ने मुझे हँसते खेलते दे दिया | मुझे घर में ही घर बता दिया | आम जनता परमार्थ की पगडंडी पर कदम रखने के लिए प्रोत्सहित करने वाली उनकी शुद्ध भावना ! परमात्मा को स्पर्श करके आनेवाली उनकी प्रभावशाली वाणी ! अलौकिक प्रेम से सबको भिगोनेवाली उनकी स्नेहपूर्ण आँखे ! वृत्ति को सुव्यवस्थित करती हुई उनके सत्संग की बातें ! जिज्ञासु की ज्ञान- पिपासा बुझाने वाली ज्ञान- सरिता एवं सत्य की अनुभूति करने वाली उनकी क्षमता ... उनकी महिमा का वर्णन कैसे करूँ ? वह महिमा भावातीत है , शब्दातीत है |



हे अविद्या को विदीर्ण करने वाले , मोह्पास को काटने वाले , अहम् का नाश करने वाले , हृदयग्रंथी को भेदने वाले , जन्म-मृत्यु की श्रंखला से मुक्त करने वाले मेरे गुरुदेव ! आपका स्मरण मात्र मुझे दीवाना बना देता है | जब तक सूर्य , चन्द्र , सितारे चमकते रहेंगे तब तक आपके उपदेश से पृथ्वी पवन होती रहेगी | धन्य हैं वे लोग जो इस दैवी कार्य में सहयोगी होने का मौका खोज लेते हैं | हे मेरे तारणहार ! आप की जय जयकार हो ! "

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